रणथंभौर में मगरमच्छों का आवास
रणथंभोर नेशनल पार्क के लगभग सभी बड़े तालाबों में व उनके आसपास मगरमच्छ देखे जा सकते हैं।
बाघों के साथ-साथ रणथंभौर अभ्यारण मगरमच्छों के लिए भी प्रसिद्ध है।
सवाई माधोपुर जिले में ही स्थित रामेश्वर घाट त्रिवेणी संगम में भी मगरमच्छों की काफी बहुतायत है।
इस जगह पर मगरमच्छों द्वारा कई बार मनुष्य का शिकार भी किया जा चुका है।
मगरमच्छ का वर्गीकरण
(Classification)
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Reptilia
Order: Crocodilia
Family: Crocodylidae
Species : Crocodylus niloticus
जैव विकास तथा आवसीय अनुकूलन
मगरमच्छ का वैज्ञानिक नाम Crocodylus niloticus है
जैव विकास के क्रम में जिस प्राणी ने सर्वाधिक अनुकूलनता हासिल की है मगरमच्छ उनमें नंबर एक पर है।
यानी कि जैव विकास की प्रक्रिया में मगरमच्छ ने इस पृथ्वी के शुरुआती पर्यावरण से लेकर आज तक अपने आप को अनुकूल बना रखा है।
मगरमच्छ प्रागैतिहासिक काल से बचा हुआ एकमात्र एसा जीव है जो लगभग डायनासोर के समय से पृथ्वी पर मौजूद है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि मगरमच्छ जल व स्थल दोनों में बड़ी आसानी से रह सकता है। एक बार भोजन करने के बाद कई दिनों तक मगरमच्छ खाना नहीं खाता है।
जैसी की कहावत है कि "पानी में रहकर मगरमच्छ से शत्रुता अच्छी नहीं" यह अलवणीय जल में रहने वाले हर प्राणी से अधिक ताकतवर और अनुकूल होता है ,यानि की मगरमच्छ अलवणीय जल का राजा है।
लवणीय जल (समुद्री जल ) में मगरमच्छ नहीं पाया जाता। यह अलवणीय जल( नदी,तालाब,झील आदि) में ही पाया जाता है ।
रणथंभौर में तालाब किनारे धूप सेकते मगरमच्छ
अन्य प्रमुख बातें
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि मगरमच्छ रेप्टिलिया वर्ग (class: Reptilia) का प्राणी है ।
अर्थात यह सरीसृप यानि रेंग कर चलने वाले जीव हैं।
यह कशेरुकी (chordata) प्राणी होते हैं। इनमें रीढ की हड्डी पाई जाती है और इन्होंने पूरी तरह से अपने आप को स्थल पर रहने के अनुकूल बना लिया है ।
रेप्टिलिया वर्ग के प्राणियों का प्रमुख लक्षण यह होता है कि इनकी त्वचा सूखी, खुरदरी, ग्रंथि विहीन होती है
इनका हृदय चार को कोष्ठों में बटा होता है इनमें दो स्पष्ट आलिंद होते हैं परंतु निलय स्पष्ट रूप से विभाजित नहीं होते हैं
लेकिन मगरमच्छ इस मामले में भी अनुकूल होते हैं और इनका निलय भी पूर्ण रूप से विभाजित होता है
यह जंतु असमतापी होते हैं अर्थात शीत रूधिर वाले जंतु है। यह अपने खून को गर्म रखने के लिए जल के स्रोतों के बाहर धूप सेकते नजर आते हैं।
मगरमच्छ अंडे देते हैं और इनके अंडे कठोर कैल्शियम युक्त कवच से ढके रहते हैं। यह अपने अंडे जल स्रोत से बाहर देते हैं और वहीं पर उनका उष्मायन होता है।
खाद्य अनुकूलनशीलता
खाद्य अनुकूलनता की बात करें तो मगरमच्छ लगभग सभी शाकाहारी जंतुओं सहित कुछ छोटे मांसाहारी जंतुओं का शिकार कर सकता है।
हाथी, गैंडा ,जंगली भैसा और दरियाई घोडा वगैरह इसके सामान्य शिकार नहीं है। लेकिन यह उनके बच्चों को शिकार बना सकता है।
खाद्य श्रृंखला में मगरमच्छ को तृतीयक उपभोक्ता की श्रेणी में रखा जा सकता है।
वाईल्ड बीस्ट जैसे बड़े स्तनधारी से लेकर छोटी मछलियों तक का यह शिकार करता है।
जंगली क्षेत्रों में यह नदी में घात लगाकर बैठे रहते हैं और जब भी कोई जानवर नदी में पानी पीने आता है या नदी पार करता है तो यह उसे अपना शिकार बना लेते हैं।
छोटे तालाबों में इनका प्रमुख शिकार मछलियां सहित अन्य जलीय जीव होते हैं।
रणथंभौर में आवासीय अनुकूलन
सवाई माधोपुर में रणथंबोर नेशनल पार्क की जलवायु इस प्रकार की है कि यह मगरमच्छ के लिए पूरी तरह से अनुकूल है।
हालांकि एक - दो बार रणथंभौर नेशनल पार्क में अन्य मांसाहारी जानवर द्वारा मगरमच्छ को भी शिकार बनाया गया है।( रणथंभोर में ही मछली नामक बाघिन द्वारा मगरमच्छ के शिकार की फोटो पूरी दुनिया में बहुत वायरल हुई थी)
लेकिन ऐसा विरले ही हुआ है। जब किसी अन्य मांसाहारी प्राणी ने मगरमच्छ को अपना शिकार बनाया हो ।सर्दी के मौसम में मगरमच्छ आपको स्वच्छ जल के बडे स्रोतों के पास धूप सेकते हुए सवाईमाधोपुर के रणथंभौर में नजर आ जाते हैं
वैसे तो लोग रणथंभोर में बाघ देखने आते हैं लेकिन मगरमच्छ भी यहां के प्रमुख आकर्षक है। रणथंबोर के जॉन 3 में जोगी महल के पास वाले तालाब में आपको बहुत से मगरमच्छ देखने को मिल जाते हैं।
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